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जीवनी/आत्मकथा >> बाल गंगाधर तिलक

बाल गंगाधर तिलक

एन जी जोग

प्रकाशक : प्रकाशन विभाग प्रकाशित वर्ष : 1969
पृष्ठ :150
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 16196
आईएसबीएन :000000000

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आधुनिक भारत के निर्माता

अध्याय 18  अन्तिम दिन

तिलक की गैरहाजिरी के 13 महीनों में भारत में महत्वपूर्ण घटनाएं घटित हुई। देश को 1857 की तरह ही एक बार फिर गहरी चोट का अनुभव हुआ। किन्तु जहां उस महान क्रान्ति के परिणाम-स्वरूप भारत के ऊपर अंग्रेजी शासन का शिकंजा और भी मजबूती से कस गया था, वहां 1919 में पंजाब में हुई खून खराबी से अग्रेजी शासन को एक ऐसा जोरदार धक्का लगा कि कि वह कभी सम्हल नहीं पाया। पंजाब के जलियांवाला बाग में जो भीषण हत्याकांड हुआ, वह भारत-ब्रिटेन सम्बन्ध के इतिहास में एक नया मोड़ साबित हुआ।

इसी समय भारत के राजनीतिक गगन पर धूमकेतु की भांति महात्मा गांधी का उदय हुआ। वह चम्पारण और खेड़ा में सत्याग्रह की अचूक शक्ति को आजमा चुके थे। किन्तु वहां के लोगों की शिकायतें और मांगे बिल्कुल स्थानीय ढंग की थीं, जिन्हें पूरा करने से सरकार की प्रतिष्ठा पर कोई खास आंच नहीं आती थी। जब गांधीजी ने रौलट बिलों के विरोध में 30 मार्च, 1919 को (बाद में यह तारीख बदलकर 6 अप्रैल कर दी गई) हड़ताल करने का फैसला किया, तब पहली बार राष्ट्रीय पैमाने पर सत्याग्रह की योजना सामने आई। सत्याग्रह द्वारा इन बिलों का, जिन्हें उन्होंने ''शासन-तन्त्र में पैदा हुए एक गहरे रोग का निश्चित लक्षण'' बताया था, विरोध करने का विचार पहली बार उनके दिमाग में मद्रास में एक स्वप्न में आया। इस विचार को शीघ्र ही कार्य रूप में परिणत किया गया और सत्याग्रह आंदोलन के भूमिका स्वरूप सारे देश में 6 अप्रैल को हड़ताल मनाकर एक इतिहास बना दिया गया। गांधी जी ने इस हड़ताल में कड़ाई से अहिंसा का पालन करने का आदेश दिया था, किन्तु दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं किया जा सका और कई जगह लोगों के अत्यधिक उत्साह ने उपद्रव का रूप धारण कर लिया।

पहले की निर्धारित तिथि को ही दिल्ली में 30 मार्च को हड़ताल मनाई गई, जहां स्वामी श्रद्धानन्द के नेतृत्व में एक विशाल जुलूस निकाला गया। इस जुलूस को तितर-बितर करने के लिए पुलिस और सेना ने गोलियां चलाईं, जिनसे कई लोग मारे गए। यही गोलीकांड पंजाब की भावी नृशंस हत्याओं की भूमिका साबित हुआ, क्योंकि इसके बाद अमृतसर में 13 अप्रैल को जलियांवाला बाग में जो लोमहर्षक हत्याकांड हुआ, वह गोरों की बर्बरता का जीता-जागता प्रमाण था। निहत्थी जनता पर गोलियों की बौछारें की गईं, जिसमें 379 व्यक्ति मरे और 1,200 घायल हुए। मृतकों और घायलों के ये आकड़े सरकारी हैं, गैरसरकारी आकड़ों के अनुसार तो इनसे भी ज्यादा लोग मरे और घायल हुए थे। और फिर इस घिनौने हत्याकांड के बाद मार्शल ला जारी कर दिया गया, जब गोरे शासकों ने अपनी नंगी बर्बरता का खुलकर प्रदर्शन किया।

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    अनुक्रम

  1. अध्याय 1. आमुख
  2. अध्याय 2. प्रारम्भिक जीवन
  3. अध्याय 3. शिक्षा-शास्त्री
  4. अध्याय 4. सामाजिक बनाम राजनैतिक सुधार
  5. अध्याय 5 सात निर्णायक वर्ष
  6. अध्याय 6. राष्ट्रीय पर्व
  7. अध्याय 7. अकाल और प्लेग
  8. अध्याय ८. राजद्रोह के अपराधी
  9. अध्याय 9. ताई महाराज का मामला
  10. अध्याय 10. गतिशील नीति
  11. अध्याय 11. चार आधार स्तम्भ
  12. अध्याय 12. सूरत कांग्रेस में छूट
  13. अध्याय 13. काले पानी की सजा
  14. अध्याय 14. माण्डले में
  15. अध्याय 15. एकता की खोज
  16. अध्याय 16. स्वशासन (होम रूल) आन्दोलन
  17. अध्याय 17. ब्रिटेन यात्रा
  18. अध्याय 18. अन्तिम दिन
  19. अध्याय 19. व्यक्तित्व-दर्शन
  20. अध्याय 20 तिलक, गोखले और गांधी
  21. परिशिष्ट

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